Transformer kya hai | What is transformer

Transformer kya hai | What is transformer
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दोस्तों Transformer kya hai इसे समझने से पहले आपको ट्रांसफार्मर के अर्थ को समझना पड़ेगा ट्रांसफार्मर का अर्थ होता है। 

ट्रांसफॉर्म करने वाला मतलब एक ऐसा उपकरण है जो एक वस्तु को दूसरे रूप में हस्तांतरित करने वाला। इसका मतलब यह हुवा की ट्रांसफार्मर एक बिजली का स्थित उपकरण है

इसे एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाया ले जाया नहीं जा सकता। यह विद्युत ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में हस्तांतरित करता है

मगर इस प्रक्रिया में फ्रीक्वेंसी में कोई भी परिवर्तन नहीं होता और दोनों ओर पावर की मात्रा एक ही होती है।

ट्रांसफार्मर का आविष्कार किसने किया

इलेक्ट्रिक ट्रांसफार्मर का आविष्कार माइकल फैराडे ने 1831 में ब्रिटेन में किया था।

Working principle of Transformer | ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत

Transformer kya hai का कार्य करने का तरीका बहुत ही आसान है इसमें दो या दो से अधिक क्वाएल को एक सिलिकान स्टील की कोर जिसका स्वरूप EI के रूप में होता है

पर आमने सामने रखकर कोर का लपेटा जाता है मगर इनमें आपस में कोई भी कनेक्शन नहीं होता है अब जैसे ही पहली क्वायल (प्राइमरी वाइंडिंग) को सप्लाई दी जाती है

तो उसमें प्रत्यावर्ती प्रकृति का चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है (जिसका मान बदलता रहता है) इस चुम्बकीय क्षेत्र की बल रेखाएं दूसरे क्वायल (सेकेंडरी वाइंडिंग) के चालकों वाइंडिंग को कटती है

इससे दूसरी क्वायल में EMF पैदा हो जाता है इस EMF की मात्रा वाइंडिंग के टर्न की संख्या पर निर्भर करता है। यदि सेकेंडरी क्वायल से लोड जोड़ कर सर्किट पूरा कर दिया जाये तो उसमे करंट बहेगा।

यह करंट प्राइमरी वाइंडिंग की बैक ईएमएफ घटाकर इसमें बह रहे करंट की मात्रा बढ़ाएगा इस प्रकार बिजली ऊर्जा प्राइमरी की ओर से सेकेंडरी की ओर स्थानांतरित होगी दोनों क्वायल आपस में इंसुलेट किए जाते हैं

तथा इनका इलेक्ट्रिकल संपर्क नहीं होता पर यह साझे वैकल्पिक चुंबकीय क्षेत्र से जुड़े होते हैं

इनमें चुंबकीय संपर्क होता है दोनों क्वायल के मध्य हवा के स्थान पर आयरन कोर प्रयोग होने से उत्पन्न हुए फ्लक्स की लीकेज घट जाती है तथा चुंबकीय क्षेत्र काफी प्रबल हो जाता है

इस प्रबल चुंबकीय क्षेत्र के कारण अधिक बिजली ऊर्जा एक ओर से दूसरी ओर भेजी जा सकती है इसी को म्यूच्यूअल इंडक्शन सिद्धांत (फैराडे के इलेक्ट्रो मैग्नेटिक सिद्धांत) कहते है।

यदि प्राइमरी वाइंडिंग की वोल्टता Vp हो।

सेकेंडरी वाइंडिंग की वोल्टता Vs हो।

प्राइमरी वाइंडिंग में फेरों की संख्या Np हो।

सेकेंडरी वाइंडिंग में फेरों की संख्या Ns हो।

तथा फ्लक्स Φ हो तो इनमें निम्न संबंध होते हैं।

Np/Ns = Vp/Vs = n = Turns Ratio

Transformer rating | ट्रांसफार्मर में रेटिंग क्या है

इसे भी पढ़े- 1- DG सेट क्या है?

2- Mcb कितने प्रकार की होती है?

सेकेंडरी वाइंडिंग- यह वाइंडिंग भी इंसुलेटेड वायर का क्वायल का होता है Transformer kya hai में यह सेकेंडरी साइड होता है इस वाइंडिंग से हम ट्रांसफार्मर का आउटपुट लेते हैं

मतलब जो LT सप्लाई होती है वह सप्लाई सेकेंडरी साइड से हमें प्राप्त होती है इसकी तार का साइज इसमें से गुजरने वाले करंट पर निर्भर करता है इसकी टर्न आवश्यक वोल्टेज को सामने रखकर ज्ञात किया जाता है।

transformer kya hai

कोर- यह चुंबकीय फ्लक्स को कम  का मार्ग प्रदान करता है इस पर ही प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग फिट की जाती है कोर लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील की पत्तियों को छोड़कर बनाया जाता है

यह चुंबकीय फ्लक्स के लिए अटूट मार्ग का काम करता है इसमें एयर गैप या दूरी नहीं होती हाई सेलकॉन स्टील का प्रयोग अच्छी परमीबिलिटी देती है

तथा हिस्ट्रेसिस लॉस कम कर देती है एड्डी करंट के कारण होने वाली हानियां कोर को लैमिनेट करके घटाई जाती हैं लेमिनेशन के दोनों ओर कोर प्लेट वार्निश या एक साइड की पतली से इंसुलेट किए जाते हैं

50Hz की फ्रीक्वेंसी के लिए इन पत्तियों की मोटाई 0.35 मिली मीटर रखी जाती है तथा 25Hz के लिए 0.5 मिलीमीटर रखी जाती है

इन पत्तियों को इस प्रकार जोड़ा जाता है की इनके जोड़ एक दूसरे के आमने सामने ना आए इस प्रकार एयर गैप नहीं बनता ऐसे जोड़ों को इंब्रिकेटेड जोड़ कहा जाता है।

कोर के रूप के आधार पर ट्रांसफार्मर तीन प्रकार के होते हैं।

1- कोर टाइप इसमें एक ही चुंबकीय सर्किट बनता है।

2- सेल टाइप इसमें दो चुंबकीय सर्किट बनता है।

3- बेरी टाइप इसमें चुंबकीय सर्किट कई भागों में बटा होता है।

कवर/कंटेनर- कवर/ कंटेनर  यह एक प्रकार का बॉक्स होता है जिसके अंदर ट्रांसफॉर्मर ऑयल रखा जाता है

और फिर इसी में एक कोर पर दो वाइंडिंग प्राइमरी और सेकेंडरी लपेटकर कंटेनर के अंदर डाल दिया जाता है

यह वाइंडिंग और कोर के साथ-2 ट्रांसफार्मर आयल को सुरक्षा प्रदान करता है जब ट्रांसफार्मर रनिंग में होता है तो ट्रांसफार्मर गर्म होता है

उस कंडीशन पर यही कंटेनर कोर को ठंडा करने का भी काम करता है।

ट्रांसफार्मर आयल- यह एक खनिज तेल होता है मतलब या भी एक पेट्रोलियम का अंग है ट्रांसफार्मर का जो टैंक होता है

उसमें इस ट्रांसफार्मर को भर दिया जाता है और फिर उसमें क्वायल कोर आदि को डाला जाता है यह ट्रांसफॉर्मर ऑयल कोर को वाइंडिंग को और पूरे ट्रांसफार्मर को ठंडा करता है

इसके साथ साथ वाइंडिंग को एक अच्छी क्वालिटी का इंसुलेशन भी प्रदान करता है।

बुशिग- यह ट्रांसफार्मर का प्राइमरी साइड होता है मतलब इस साइट हम ट्रांसफार्मर का प्राइमरी वोल्टेज जो इनपुट वोल्टेज होता है कनेक्ट करते हैं

बुशिग का मतलब होता है इंसुलेटर मतलब प्राइमरी साइड में इंसुलेटर लगे होते हैं जो कि 3 इंसुलेटर होते हैं।

सेकेंडरी कनेक्शन टर्मिनल- जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है की सेकेंडरी वाइंडिंग का यह टर्मिनल है मतलब ट्रांसफार्मर जो एलटी सप्लाई आउटपुट में निकालता है

वह सप्लाई इसी सेकेंडरी साइड से हम प्राप्त करते हैं इस साइट पर कॉपर के मोटे-मोटे टर्मिनल होते हैं और इसी में ट्रांसफार्मर की जो आउटपुट कि केवल है वह कनेक्ट की जाती है।

रेडिएटर/ कूलिंग ट्‌यूब- यह ट्रांसफार्मर के 2 साइड पर लगा होता है इसमें पतली पतली ट्यूब होती है जिनके बीच से हवा गुजरती रहती है जिसमें ट्रांसफार्मर आयल भरा होता है

जब ट्रांसफार्मर रनिंग कंडीशन में होता है तो उसमें जो वाइंडिंग होती है वह गर्म होती है और यह गर्मी को खत्म करने के लिए हम ट्रांसफार्मर आयल  का उपयोग करते हैं

यह ट्रांसफॉर्मर ऑयल जब गर्म हो जाता है तो ट्यूब में तरफ की तरफ जाता है और फिर ठंडा होकर नीचे आ जाता है और ट्रांसफार्मर के टैंक से होते हुए वापस गर्म होकर ऊपर की तरफ आ जाता है

और यह प्रक्रिया लगातार होती रहती है जिससे ट्रांसफार्मर आयल ठंडा हो जाता है जिससे वाइंडिंग ठंडी हो जाती है।

एक्सप्लोजन वैन्ट- यह Transformer kya hai का एक सुरक्षा उपकरण है Transformer kya hai की जो बॉडी होती है उसके ऊपर साइड में एक ऊंचा स पाइप होता है और ऊपर से थोड़ा सा बैंड होता है

यह एक NRB की तरह काम करता है मतलब बाहर से हवा या कोई भी चीज अंदर नहीं जा सकती परंतु यदि ट्रांसफार्मर में कोई दिक्कत आती है

जैसे कि शॉर्ट सर्किट या कुछ ब्लास्ट होता है तो ट्रांसफॉर्मर ऑयल का विस्तार होता है और अंदर बहुत ज्यादा प्रेशर बनता है

उस वक्त यदि सभी सेफ्टी इक्विपमेंट जो ट्रांसफार्मर को सेफ्टी देते हैं फेल हो जाते हैं तो उस समय Transformer kya hai को सुरक्षित रखने के लिए अंतिम में यही काम आता है

इसका काम होता है कि जो अंदर प्रेशर बना हुआ है उस प्रेशर को तत्काल Transformer kya hai के अंदर से बाहर निकाल देना

क्योंकि अगर यह प्रेशर ट्रांसफार्मर के अंदर बना रह गया तो ट्रांसफार्मर ट्रांसफार्मर की बॉडी के फटने का डर बना रहता है।

बुकोल्ज रिले- यह भी Transformer kya hai के लिए सेफ्टी डिवाइस का काम करता है ट्रांसफार्मर के ऊपर लगा होता है ट्रांसफार्मर का टैंक जहां पर ट्रांसफार्मर आयल भरा रहता है

और उसके ऊपर कंजरवेटर लगा होता है इन दोनों के बीच में बुकोल्ज रिले लगा होता है।

जब ट्रांसफार्मर के टैंक में किसी प्रकार का कोई ब्लास्ट होता है या शॉर्ट सर्किट होती है उस कंडीशन पर ट्रांसफार्मर के टैंक में प्रेशर बनता है

वह प्रेशर बुकोल्ज रिले के माध्यम से ट्रांसफार्मर से बाहर निकलने की कोशिश करता है उस परिस्थिति में बुकोल्ज रिले के सीरीज में वैक्यूम सर्किट ब्रेकर लगा होता है

अब जैसे ही प्रेशर बाहर निकलता है बुकोल्ज रिले के कांटेक्ट बदल जाते हैं जिससे वैक्यूम सर्किट ब्रेकर ट्रिप जाता है

ट्रांसफार्मर को मिलने वाली हाई वोल्टेज की सप्लाई बंद हो जाती है जिससे ट्रांसफार्मर से बच जाता है और किसी प्रकार का कोई एक्सीडेंट नहीं होता है।

ब्रीदर- जैसा कि नाम से ही पता चल रहा है की ब्रीदर मतलब सांस लेना यहीं से ट्रांसफार्मर सांस लेता है ब्रीदर कंजरवेटर से जुड़ा हुआ होता है

अब जब ट्रांसफार्मर लोड पर होता है तो उस वक्त ट्रांसफार्मर के अंदर गर्मी पैदा होती है अब चुकी ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग ट्रांसफॉर्मर ऑयल में डूबी रहती है

तो ट्रांसफार्मर आयल गर्म होकर फैलता है और ट्रांसफार्मर के आयल में जितना फैला होता है वह आयल कंजरवेटर में आ जाता है अब चूंकि कंजरवेटर में जो हवा होती है

वह हवा ब्रीदर के माध्यम से बाहर निकल जाती है चूंकि ब्रीदर में सिल्का जेली भरी होती है इसका काम होता है की नमी को सोख लेना अब जब Transformer kya hai के अंदर से हवा बाहर निकलती है

यहां तक तो ठीक रहता है मगर जब Transformer kya hai पर लोड कम होता है और वाइंडिंग ठंडी होती है जिससे ट्रांसफार्मर भी ठंडा होता है जब ट्रांसफार्मर आयल ठंडा हो जाता है तो उसमें संकुचन होता है

जिससे कंजरवेटर में जो बढ़ा हुआ ट्रांसफार्मर तेल होता है वह वापस टैंक में आ जाता है अब चूंकि कंजरवेटर खाली हो जाता है तो वहां पर हवा जगह बनाती है

और यह हवा ब्रीदर के माध्यम से ही अंदर आती है परंतु जो हवा होती है वह वातावरण की हवा होती है जिसमें नमी होती है

अगर यह नमी युक्त हवा ट्रांसफार्मर में चली जाए तो ट्रांसफार्मर आयल खराब हो जाएगा इसी के लिए ब्रीदर में सिलका जली रखी जाती है

जो वातावरण की नमी को सोखकर एकदम सुखी हवा ट्रांसफार्मर के अंदर जाने देती है जिससे ट्रांसफार्मर आयल खराब नहीं होता है

अब यही प्रक्रिया जितनी बार भी होती है उतनी बार ब्रीदर ट्रांसफार्मर आयल में नमी जाने से रोकता है।

कंजरवेटर- यह ट्रांसफार्मर के टैंक से लगा हुआ एक टैक होता है इसी के माध्यम से ट्रांसफॉर्मर ऑयल ट्रांसफार्मर में डाला जाता है

जब ट्रांसफार्मर आयल डाला जाता है तो सबसे पहले टैंक को भरा जाता है जब टैंक भर जाता है उसके बाद कंजरवेटर भरता है कंजरवेटर में आयल का लेवल आधा रखा जाता है

मतलब कंजरवेटर आधा भरा होता है और आधा खाली होता है इसका कारण यह होता है कि जब ट्रांसफार्मर आयल में विस्तार होता है तू जो आधा टैंक खाली होता है

उसी में बढ़ा हुआ तेल इकट्ठा होता है इस तेल की क्या कंडीशन है मतलब टैंक में कितना तेल है उसके लिए एक कंजरवेटर में आयल गेज लगा होता है।

आयल लेवल इंडिकेटर- यह कंजरवेटर में लगा हुआ आयल लेवल गेज होता है इसको देखकर यह पता चलता है कि कंजरवेटर कितना भरा हुआ है।

आन लोड टैप चेंजर- यह Transformer kya hai का एक अलग से भाग होता है आपके घर में जो स्टेबलाइजर लगा हुआ होता है उसका काम होता है की जब वोल्टेज डाउन हो जाता है

तो उस कंडीशन पर स्टेबलाइजर वोल्टेज को बढ़ाकर घर को सप्लाई करता है ठीक इसी तरह का काम आन लोड टैप चेंजर भी करता है

जब Transformer kya hai की इनपुट सप्लाई का वोल्टेज कम होता है तो आउटपुट का वोल्टेज भी कम ही होगा उस परिस्थिति में ऑन लोड टैप चेंजर वोल्टेज को हम जितना चाहते हैं

उतने पर मेंटेन करता है चूँकि Transformer kya hai से लोड कनेक्ट होता है जिससे हाई करंट का बहाव होता है अब इस परिस्थिति में सबसे ज्यादा करंट सेकेंडरी साइड (low voltage) में होता है

तो हाई करंट जहां पर होगा वहां पर हम टैप नहीं चेंज कर सकते (अगर आप टैप का मतलब नहीं समझ रहे हैं तो मैं आपको बता दूं की Transformer kya hai की पूरी वाइंडिंग के बीच-2 में कई सारे टैप टैपिंग करके निकाल लिए जाते हैं

जिससे Transformer kya hai की वाइंडिंग का रेजिस्टेंस काम ज्यादा होता है जिससे आउटपुट वोल्टज काम ज्यादा होता है) मतलब सेकेंडरी साइड टैप चेंजर नहीं होता

क्योंकि वह पर हाई करंट होता है टैप चेंजर को प्राइमरी साइड ही लगाया जाता है क्योंकि इसी साइड हाई वोल्टेज होता है और करंट काम होता है

इसी कारण से प्राइमरी साइड टैप चेंज करना आसान होता है।

वाइंडिंग टैम्प्रेचर इंडिकेटर-  जब ट्रांसफार्मर लोड पर होता है तो उसकी वाइंडिंग हीट होती है

अब ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग ज्यादा न हीट हो इसके लिए एक टेम्प्रेचर सेंसर ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग में लगा कर रखते है

जिससे वाइंडिंग का कितना टेम्प्रेचर है बाहर लगे डिस्प्ले पर पता चलता रहता है और कितना टेम्प्रेचर से ज्यादा ट्रांसफार्मर न हीट हो उसके पहले ट्रांसफार्मर बंद हो जाये

उस टेम्प्रेचर को हम यही पर सेट कर सकते है यह भी ट्रांसफार्मर का एक सेफ्टी इक्विपमेंट है।

आयल टैम्प्रेचर इंडिकेटर- जब ट्रांसफार्मर लोड पर होता है तो उसकी वाइंडिंग हीट होती है जिससे ट्रांसफार्मर का आयल भी हीट होता है

अब ट्रांसफार्मर का आयल ज्यादा न हीट हो इसके लिए एक टेम्प्रेचर सेंसर ट्रांसफार्मर के आयल में डुबो कर रखते है जिससे ट्रांसफार्मर के आयल का कितना टेम्प्रेचर है बाहर लगे डिस्प्ले पर पता चलता रहता है

और कितना टेम्प्रेचर से ज्यादा ट्रांसफार्मर आयल न हीट हो उसके पहले ट्रांसफार्मर बंद हो जाये उस टेम्प्रेचर को हम यही पर सेट कर सकते है यह भी ट्रांसफार्मर का एक सेफ्टी इक्विपमेंट है।

हॉर्न गैप- यह ट्रांसफार्मर के HT साइड पर लगी जो बुसिंग होती है उसपर लगा होता है इसमें 2 आयरन के रॉड होते है इसमें ऊपर वाली रॉड हाई वोल्टेज की केबल जहाँ पर कनेक्ट होती है वहां पर लगी होती है

और नीचे वाली रॉड अर्थ से कनेक्ट होती है और इनके बीच में गैप होता है और यह गैप उतना ही होता है जितना ट्रांसफार्मर की इनपुट वोल्टेज का 15 से 20% का जो मैग्नेटिक फील्ड होता है

उतना होता है इसके बाद जो भी हाई वोल्टेज आती है उसकी मात्रा ऊपर की रॉड से नीचे की रॉड पर ट्रांसफर हो जाता है और एक्स्ट्रा हाई वोल्टेज ट्रांसफार्मर में नहीं जा पाती।

ड्रेन कॉक- यह ट्रांसफार्मर का जो टैंक होता है उसके नीचे वाले भाग में लगा होता है और इसमें एक चकवाल भी लगा होता है इससे ट्रांसफार्मर के टैंक का जो आयल होता है उसे बाहर निकलते है।

Type of Transformer | ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते है

आदर्श ट्रांसफार्मर- आदर्श ट्रांसफार्मर की दक्षता 100% होती है परंतु वास्तव में ऐसा नहीं होता कुछ कारणों से ट्रांसफार्मर में हानि हो जाती है

चूँकि ट्रांसफार्मर एक स्थिर उपकरण है इसीलिए इसमें लॉस बहुत कम होता है सामान्य रूप से ट्रांसफार्मर की दक्षता 98% तक रहती है।

वोल्टेज के आधार पर

 

1- स्टेप अप  ट्रांसफार्मर (Step Up Transformer)- यह ट्रांसफार्मर इलेक्ट्रिसिटी के ट्रांसमिशन के लिए उपयोग किया जाता है जहां पर इलेक्ट्रिसिटी पैदा होती है

वहां से हजारों किलोमीटर दूर यहां पर उपभोक्ता है वहां तक इलेक्ट्रिसिटी इसी ट्रांसफार्मर की मदद से पहुंचाया जाता है

यह ट्रांसफार्मर वोल्टेज को बढ़ा देता है (जैसे- 6.6kv,11kv, 33kv, 132kv, 220kv, 440kv और इससे भी ज्यादा) इसीलिए इसका नाम स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर है

अभी आप बड़ी हुई वोल्टेज ट्रांसमिशन लाइनों के माध्यम से काफी लंबी दूरी तक भेजी जाती है जैसा कि आप जानते हैं कि ट्रांसफार्मर में दो प्रकार की वाइंडिंग होती है

पहली प्राइमरी और दूसरी सेकेंडरी इसमें भी वही दो प्रकार की वाइंडिंग होती है मगर इसमें प्राइमरी में डेल्टा कनेक्शन होता है और सेकेंडरी में भी डेल्टा कनेक्शन होता है।

मतलब डेल्टा/डेल्टा कनेक्शन होता है जब इन ट्रांसफार्मर की मदद से वोल्टेज को बढ़ा दिया जाता है तो करंट कम हो जाती है

जिससे इलेक्ट्रिसिटी को दूर-दूर तक भेजने में कम खर्च आता है क्योंकि जब करंट कम होगी तो तार पतले लगाने पड़ेंगे तारों को सपोर्ट देने वाले टावर हल्के लगाने पड़ेंगे

कुल मिलाकर इलेक्ट्रिसिटी को एक जगह से दूसरी जगह तक भेजने का खर्चा बहुत कम हो जाएगा।

2- स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर (Step Down Transformer)- यह ट्रांसफार्मर जैसा नाम से पता चल रहा है की स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर यह वोल्टेज को हाई से लो में चेंज करता है

इसका मतलब यह हुवा की जब वोल्टेज को हम स्टेपअप ट्रांसफार्मर से हाई करके और ट्रांसमिशन लाइन के माध्यम से जब सप्लाई पावर हाउस तक पहुँचता है

फिर स्टेप डाउन ट्रांसफार्मर से उस वोल्टेज को डाउन करके (440volt, 230volt) में बदल देते है इस ट्रांसफार्मर में जो वाइंडिंग का कनेक्शन होता है

वह डेल्टा से स्टार होता है क्योंकि इस सप्लाई को हम अपने घरों में उपयोग करते है जिसके लिए हमें न्यूट्रल की जरुरत पड़ती है।

फेज की संख्या के आधार पर

 

1- सिंगल फेज ट्रांसफार्मर (Single Phase Transformer)- यह ट्रांसफार्मर 1 फेज का ट्रांसफार्मर होता है मतलब इस ट्रांसफार्मर की जो आउटपुट वोल्टेज होती है वह 230 वोल्ट होती है

इस ट्रांसफार्मर में दो वाइंडिंग होती है जिसमें पहली वाइंडिंग प्राइमरी और दूसरी वाइडिंग सेकेंडरी वाइंडिंग होती है प्राइमरी वाइंडिंग में हम इनपुट सप्लाई हाई वोल्टेज के रूप में देते हैं

और सेकेंडरी वाइंडिंग हमें लो वोल्टेज 230 बोल्ट देता है कुल मिलाकर या ट्रांसफार्मर स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर है।

2- थ्री फेज ट्रांसफार्मर (Three Phase Transformer)- यह ट्रांसफार्मर 3 फेज का ट्रांसफार्मर होता है

मतलब जैसा सिंगल फेज ट्रांसफॉर्मर 230 बोल्ट आउटपुट में मिलता था ठीक उसी तरह से इस ट्रांसफार्मर में आउटपुट में 440 बोल्ट आउटपुट में मिलता है

इस ट्रांसफार्मर में जो वाइंडिंग होती है उसकी संख्या तीन होती है मतलब प्राइमरी साइड 3 वाइंडिंग और सेकेंडरी साइड 3 वाइंडिंग होती है।

कोर के आधार पर

 

कोर टाइप ट्रांसफार्मर- इस ट्रांसफार्मर की क्वायल बेलनाकार होती है इसके अलावा यह अंडाकार में भी हो सकता है यह एक फर्मा पर लपेटकर बनाया जाता है

छोटे ट्रांसफार्मरों के लिए आयताकार काट क्षेत्रफल की कोर प्रयोग की जाती है बड़े ट्रांसफार्मरों में कोर को लगभग गोल किया जाता है

इस प्रकार की कोर को क्रूसीफार्म सेक्शन की कोर कहते हैं बेलनाकार क्वाइलों की यांत्रिक शक्ति अधिक होती है

तार को इनमें चूड़ीदार रूप में लपेटा जाता है तथा हर तरह को पेपर, कपड़े या माइका से इंसुलेट किया जाता है कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग को इंसुलेट करना आसान होता है

इसलिए इसे कोर के पास रखा जाता है फुलर बोर्ड के सिलेंडरों का प्रयोग क्वाइलों को कोर से अलग करने के लिए किया जाता है

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में वाइंडिंग कोर का अधिक भाग ढक कर रखती है आमतौर पर प्राइमरी तथा सेकेंडरी क्वायल अलग-अलग होती है

पर लीकेज की मात्रा कम करने के लिए इन्हें दोनों और एक दूसरे पर अलग-अलग तो हूं में लपेटा जाता है।

शैल टाइप ट्रांसफार्मर- इनमें क्वाइलों का अधिक भाग कोर्ट द्वारा ढका जाता है इसके क्वायल डिस्क के रूप में लपेटे जाते हैं क्वाइलों से बनी डेस्क की तहे पेपर से इंसुलेट की जाती हैं

पूरी वाइंडिंग इन डिस्को को जोड़कर बनती है इनकी कोर सारी आयताकार रूप की या बटे हुए रूप में हो सकती है

इनको रोको आपस में जुड़ा रखने के लिए मजबूत लोहे के फ्रेम होने चाहिए इस विशेष प्रकार के फ्रेम या फ्लैप ट्रांसफार्मर में पैदा होने वाली आवाज को कम करते है

क्वाइलों की तार का साइज इन में चलने वाली करंट के आधार पर लिया जाता है।

बेरी टाइप ट्रांसफॉर्मर- इसमें वाइंडिंग केंद्र के मध्य सांझीं कोर पर की जाती है तथा इनके आसपास कोर के कई भाग होते हैं

इस प्रकार फ्लक्स को कई मार्ग प्राप्त हो जाते हैं इसका चुंबकीय क्षेत्र बहुत अधिक प्रभावशाली होता है तथा इसकी बनावट जटिल होती है इसे फाइंड करना भी कठिन होता है

इसीलिए इस प्रकार के ट्रांसफार्मर बहुत कम बनाए जाते हैं तथा इनका प्रयोग भी कम ही किया जाता है।

इंस्ट्रूमेंट में उपयोग के आधार पर

 

करंट ट्रांसफार्मर- यह ट्रांसफार्मर एक इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर है मतलब इसका उपयोग हम विद्युत को मापने के लिए करते हैं ट्रांसफार्मर हम सब स्टेशन में घरों में फैक्ट्रियों में उपयोग करते हैं

इस ट्रांसफार्मर को हम सीटी नाम से भी जानते हैं मतलब करंट ट्रांसफॉर्मर यह ट्रांसफार्मर लाइन के सिरीज में लगाया जाता है मतलब जो लाइन का तार होता है

उसमें सिटी को पहना दिया जाता है और उस सिटी से निकले हुए S1 S2 के तार को हम एंपीयर मीटर पर ले जाकर के कनेक्ट कर देते हैं इसमें जो प्राइमरी साइड होता है

वह लाइन का तार होता है और सिटी के तार S1 S2 सेकेंडरी साइड होते हैं या ट्रांसफॉर्मर स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर होता है।

पोटेंशियल ट्रांसफॉर्मर- यह ट्रांसफार्मर भी एक इंस्ट्रूमेंट ट्रांसफॉर्मर होता है इसका उपयोग हम वोल्टेज नापने के लिए करते हैं या ट्रांसफार्मर लाइन के पैरलल में लगाया जाता है

ट्रांसफॉर्मर स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर होता है मतलब हाई वोल्टेज को लो वोल्टेज में बदल देता है।

आटो ट्रांसफार्मर- यह एक विशेष प्रकार का ट्रांसफार्मर होता है इस ट्रांसफार्मर में प्राइमरी और सेकेंडरी वाइंडिंग एक ही होती है और इसमें किसी भी कोर का उपयोग नहीं होता है

इसमें जो वाइंडिंग उपयोग होती है उसमें कुछ-कछ क्वाएल के टर्न के बाद बीच-बीच में टैप निकाल दिया जाता हैं इससे ट्रांसफार्मर के वाइंडिंग का प्रतिरोध बदलता है जिससे वोल्टेज अप डाउन होता है।

ट्रांसफार्मर में होने वाली हानियां-

ट्रांसफार्मर में कई प्रकार की हानियां होती हैं जैसे आयरन लॉस, हिस्टैरिसिस लॉस, एड्डी करंट लॉस, कॉपर लॉस, स्ट्रे लॉस, डाई इलेक्ट्रिक लॉस।

आयरन लॉस- आयरन लॉस का मतलब होता है लोहे में होने वाला लॉस ट्रांसफार्मर में जो चुंबकीय फ्लक्स उत्पन्न होता है

जब वह फ्लक्स लोहे के कोर में से होकर गुजरता है तब लोहा में जो मौजूद रिलायंस होता है उसके कारण फ्लक्स का कुछ भाग खराब हो जाता है

लोहे में जो चुंबकीय फ्लक्स खराब हो जाता है वही आयरन लॉस होता है यह आयरन लॉस दो प्रकार का होता है जिस्म से पहला होता है एड्डी करंट लॉस और दूसरा होता है हिस्टैरिसिस लॉस।

एड्डी करंट लॉस- ट्रांसफार्मर में जो लोहे की कोर होती है उसमें जो चुंबकीय फ्लक्स प्रवाहित होता है वह प्रत्यावर्ती प्रवृति का होता है अब चुकी ट्रांसफार्मर का जो कोर होता है

वह आयरन यानी कि लोहे का बना होता है अब चुकी लोहा एक धातु है इसीलिए कोर से जल चुंबकीय फ्लक्स लिंक करता है तो उसमें वह वोल्टेज उत्पन्न कर देता है अब तू की कोर में वोल्टेज का प्रवाह होता है

इसीलिए उसमें करंट का भी प्रवाह होने लगता है जिससे इस करंट के कारण कोर में I2R ऊर्जा का नुकसान होता है और यही एड्डी करंट लॉस होता है।

हिस्टैरिसिस लॉस- ट्रांसफार्मर कि जो कोर होती है उसमें जो चुंबकीय फ्लक्स प्रवाहित होता है वह प्रत्यावर्ती प्रकार का होता है जिससे कोर में एक प्रत्यावर्ती लूप बन जाता है

जिससे चुंबकीय पदार्थ में जो मौजूद परमाणु होते हैं वे चुंबकीय बल का अनुभव करते है अब यह जो बल होता है उसके कारण वह अपने स्थान से खिसकने लगता है

यह प्रक्रिया हमेशा होती रहती है और इस कारण से चुंबकीय पदार्थ गर्म हो जाता है और इस प्रकार की जो विद्युत ऊर्जा की जो हानि होती है उसे हिस्ट्रेसिस लॉस कहते हैं।

कापर लॉस- ट्रांसफार्मर की जो प्राइमरी वाइंडिंग होती है और जो सेकेंडरी वाइंडिंग होती है इनका अपना एक आंतरिक प्रतिरोध होता है

इस कारण से विद्युत ऊर्जा का इसमें लॉस होता है और इसी लाश को हम कॉपर लॉस कहते हैं यह प्राइमरी तथा सेकेंडरी वाइंडिंग में प्रवाहित होने वाली जो विद्युत धारा होती है उस पर निर्भर करता है।

स्ट्रे लॉस- ट्रांसफार्मर के कोर से बहने वाला जो चुंबकीय फ्लक्स होता है उसका कुछ अंश ट्रांसफार्मर से बाहर हवा में फैल जाता है जो एक प्रकार से फ्लक्स का लॉस होता है

हवा में होने वाली इस चुंबकीय फ्लक्स की जो हानि होती है उसे स्टेलॉस कहा जाता है ट्रांसफार्मर में होने वाला यह लॉस अन्य प्रकार कैलाश के तुलना में बहुत कम होता है

इसलिए इस लॉस को हम नजरअंदाज कर देते हैं।

Transformer testing | ट्रांसफार्मर के क्या-2 टेस्ट होते है

Open circuit test | ओपन सर्किट टेस्ट- यह टेस्ट आयरन हानियों को ज्ञात करने के लिए किया जाता है

इसमें ट्रांसफार्मर के एक ओर की वाइंडिंग को खुला रखा जाता है दूसरी ओर को नार्मल सप्लाई से जोड़ा जाता है आमतौर पर हाई वोल्टेज की ओर ओपन रखा जाता है।

सप्लाई की ओर वोल्ट मीटर, वाट मीटर, तथा एम्पीयर मीटर जोड़ दिए जाते हैं नॉर्मल सप्लाई के कारण नॉर्मल मात्रा का फ्लेक्स पैदा होता है तथा आयरन हानियां भी नॉर्मल मात्रा की होती हैं

नो लोड करंट I0 बहुत कम मात्रा का होता है इसलिए कॉपर लॉस नहीं होता और इसीलिए इस स्थिति में वाटमीटर केवल आयरन लॉसेस को पढ़ता है

इस समय वाट मीटर की रीडिंग कोर या आयरन लॉस प्रकट करती है।

Short circuit test | शार्ट सर्किट टेस्ट- यह टेस्ट कॉपर हानियाँ ज्ञात करने के लिए किया जाता है

इस टेस्ट के समय कम वोल्टेज की ओर बाइंडिंग को आवश्यक कैपेसिटी के एम्पीयर मीटर से शार्ट कर दिया जाता है हाई वोल्टेज वाली ओर एंपीयर मीटर, वाट मीटर, तथा वोल्ट मीटर जोड़ दिए जाते हैं

फिर ऑटो ट्रांसफार्मर की सहायता से हाई वोल्टेज की और कम वोल्टेज सप्लाई दी जाती है अब वोल्टेज की मात्रा इस प्रकार बढ़ाई जाती है

जिससे हाई वोल्टेज वाली ओर पूरी लोड करंट प्राप्त हो जाती है कम वोल्टेज देने के कारण कोर में फ्लक्स की मात्रा कम रहती है तथा कोर लॉसेस नाममात्र ही होते हैं

इस स्थिति में वाट मीटर की रीडिंग कॉपर लॉसेस के बराबर होती है।

निष्कर्ष

दोस्तों इस पोस्ट में आप लोगो ने Transformer kya hai के बारे में जाना।

ट्रांसफार्मर किसने बनाया, ट्रांसफार्मर का कार्य सिद्धांत, ट्रांसफार्मर के भाग, ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते है, ट्रांसफार्मर में कितने प्रकार की हानियाँ होती है

ट्रांसफॉर्मर की रेटिंग, ट्रांसफार्मर में कितने प्रकार के टेस्ट होते है और ट्रांसफार्मर में कितने प्रकार टेस्ट होते है और भी बहुत कुछ इस पोस्ट में बताने का प्रयास किया है 

फिर भी आपका कोई प्रश्न है उसे जरूर पूछे मैं उसका उत्तर जरूर देने का प्रयास करूँगा।

नोट- यह भी पढ़े।

1- सर्किट ब्रेकर कितने प्रकार के होते है?

2- इलेक्ट्रिकल वायरिंग में क्या-2 सामान लगता है

3- सोलर सिस्टम कितने प्रकार का होता है

4- हीटर का सप्लाई वायर गरम क्यों नहीं होता?

5- इलेक्ट्रिकल वायरिंग में क्या-2 सामान लगता है

6- इलेक्ट्रीशियन के टूल्स के नाम

7- सोलर पैनल क्या होता है?

8- इलेक्ट्रिकल काम में सुरक्षा


अब भी कोई सवाल आप के मन में हो तो आप इस पोस्ट के नीचे कमेंट करके पूछ सकते है या फिर इंस्टाग्राम पर rudresh_srivastav” पर भी अपना सवाल पूछ सकते है।

अगर आपको इलेक्ट्रिकल की वीडियो देखना पसंद है तो आप हमारे चैनल target electrician  पर विजिट कर सकते है। धन्यवाद्

Transformer kya hai से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (Mcq)-

1- Transformer kya hai इसका कार्य क्या है?

ट्रांसफार्मर एक प्रकार का विद्युत उपकरण है जो हाई वोल्टेज को लो वोल्टेज के बदलता है और लो वोल्टेज को हाई वोल्टेज में बदलता है।

2- ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं?

मुख्य रूप से ट्रांसफार्मर दो प्रकार के होते हैं जिसमें से पहला स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर और दूसरा स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर।

3- ट्रांसफार्मर में कौन सा तेल प्रयोग किया जाता है?

ट्रांसफार्मर में ट्रांसफार्मर आयल का प्रयोग किया जाता है यह एक खनिज आयल होता है इसका उपयोग ट्रांसफार्मर की वाइंडिंग को अतिरिक्त इंसुलेशन व ट्रांसफार्मर को ठंडा रखने में किया जाता है। हाई तापमान पर भी इसका इंसुलेशन ख़राब नहीं होता।

4- ट्रांसफार्मर का अधिकतम तापमान कितना होता है?

सामान्य परिस्थित में ट्रांसफार्मर का अधिकतम तापमान 65°C से 80°C तक पहुंच जाता है और सामान्य परिस्थित में ट्रांसफार्मर का काम तापमान 35°C होता है।

5- ट्रांसफॉर्मर का कोर किसका बना होता है?

ट्रांसफॉर्मर का कोर सिलिकॉन स्टील का बना होता है और इसे लेमिनेट कर दिया जाता है और इसका आकर E I के आकर में हटा है कोर को लेमिनेट कर देने से एड्डी करेंट लॉस नहीं होता है।