आज के समय में विद्युत ऊर्जा एक समाधान के रूप में सोलर पैनल का महत्व बढ़ता ही जा रहा है सौर पैनल के 3 प्रकार क्या हैं? इसके बारे में हर एक आदमी जानना चाहता है।
सूर्य से प्राप्त प्रकाश रूपी ऊर्जा को Solar Panel की सहायता से हम बिजली में बदलते है। सोलर पैनल में काफी मात्रा में छोटे-2 Solar Cell होते हैं। जिन पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है तो बिजली उत्पन्न होती हैं।
सूर्य से प्राप्त ऊष्मा को Solar Panel विद्युत ऊर्जा में बदल देते है। और इस विद्युत को हम अपने घर, खेतों, कार्यालयों में उपयोग कर सकते हैं।
जो अंतरिक्ष में सेटलाइट होता है। वह कई देशों को अंतरिक्ष से संबंधित आवश्यक सूचनाएं देता है।
इसके ऊपर Solar Panel लगे होते है। अंतरिक्ष में सूर्य कभी भी नहीं छिपता इसलिए Solar Panel पर हमेशा सूर्य की रोशनी पड़ती रहती है।
जिससे उसे इलेक्ट्रिसिटी मिलती रहती है। इसके साथ-2 इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में भी सोलर पैनल लगे होते है जिससे इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन की बिजली मिलती रहती हैं।
सोलर पैनल क्या है
यह एक PN जंक्शन होती है लेकिन यह उससे कुछ अलग होता है सोलर सेल बनाने के लिए P तथा N भाग में से एक भाग को दूसरे की तुलना में पतला बनाया जाता है।
हम P भाग को N भाग की तुलना में पतला बनाते हैं P अर्धचालक वाले भाग के ऊपर इलेक्ट्रोड लगा देते हैं जो इस पर आने वाले प्रकाश को रोके नहीं और आने वाला प्रकाश सीधे P अर्धचालक के पतले भाग में पहुंच जाए।
P भाग के बिल्कुल नीचे PN जंक्शन होता है N भाग के नीचे विद्युत धारा संग्रह करने के लिए इलेक्ट्रोड लगे रहते हैं इस संपूर्ण सिस्टम को हम कांच के आवरण में रखते हैं ताकि इस सिस्टम को नुकसान से बचाया जा सके।
सौर पैनल के 3 प्रकार क्या हैं?
सौर पैनल के 3 प्रकार क्या हैं? इसके अंतर्गत मोनोक्रिस्टलाइन (Monocrystalline), पॉलीक्रिस्टलाइन (Polycrystalline) और थिन-फिल्म पैनल (Thin-film solar panels) वाले सोलर पैनल हैं।
इन प्रकार के प्रत्येक सौर सेल को एक अनोखे तरीके से बनाया जाता है और एक ये एक दूसरे से अलग दिखाई देते है।
मोनोक्रिस्टलाइन :- मोनोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल विभिन्न प्रकार के Solar Panel में सबसे पुराने और सबसे विकसित हैं। ये मोनोक्रिस्टलाइन सोलर पैनल लगभग 40 मोनोक्रिस्टलाइन सोलर सेल (solar cells ) से बने होते हैं।
ये सोलर सेल शुद्ध सिलिकॉन से बने होते हैं। एक सिलिकॉन क्रिस्टल को पिघले हुए सिलिकॉन के एक वात में रखा जाता है।
फिर क्रिस्टल को वात से बहुत धीरे-2 बाहर निकाला जाता है, जिससे पिघला हुआ सिलिकॉन इसके चारों ओर एक ठोस क्रिस्टल खोल बनाने की अनुमति देता है जिसे एक पिंड कहा जाता है।
फिर पिंड को सिलिकॉन वेफर्स में पतला काट दिया जाता है। वेफर को सेल में बनाया जाता है, और फिर सेल को एक साथ मिलकर सोलर पैनल बनाया जाता है।
सूर्य का प्रकाश शुद्ध सिलिकॉन के साथ सीधे संपर्क करता है जिससे मोनोक्रिस्टलाइन सौर सेल काले दिखाई देते हैं ।
जबकि सेल काले हैं, लेकिन फिर भी बैक शीट और फ्रेम के लिए कई प्रकार के रंग और डिज़ाइन उपलब्ध होते हैं। मोनोक्रिस्टलाइन सेल को एक वर्ग की तरह आकार दिया जाता है जिसमें कोनों को हटा दिया जाता है, इसलिए सेल के बीच छोटे अंतराल होते हैं।
पॉलीक्रिस्टलाइन:- पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर पैनल विभिन्न प्रकार के सोलर पैनल में एक नया विकास हैं, लेकिन वे लोकप्रियता और दक्षता के मामले में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। मोनोक्रिस्टलाइन सौर पैनलों की तरह, पॉलीक्रिस्टलाइन सेल सिलिकॉन से बने होते हैं।
लेकिन पॉलीक्रिस्टलाइन सेल एक साथ पिघले हुए सिलिकॉन क्रिस्टल के टुकड़ों से बनती हैं। निर्माण प्रक्रिया के दौरान, सिलिकॉन क्रिस्टल को पिघले हुए सिलिकॉन के एक वात में रखा जाता है।
इसे धीरे-2 बाहर निकालने के बजाय, इस क्रिस्टल को टुकड़े करने और फिर ठंडा होने दिया जाता है। फिर एक बार जब नए क्रिस्टल को उसके सांचे में ठंडा किया जाता है, तो खंडित सिलिकॉन को पॉलीक्रिस्टलाइन सोलर वेफर्स में पतला काट दिया जाता है।
पॉलीक्रिस्टलाइन पैनल बनाने के लिए इन वेफर्स को एक साथ इकट्ठा किया जाता है।
क्रिस्टल पर सूर्य के प्रकाश के परावर्तन के तरीके के कारण पॉलीक्रिस्टलाइन सेल नीले रंग की होती हैं। शुद्ध सिलिकॉन सेल की तुलना में सूरज की रोशनी सिलिकॉन के टुकड़ों से अलग तरह से परावर्तित होती है।
आमतौर पर, बैक फ्रेम और फ्रेम पॉलीक्रिस्टलाइन के साथ सिल्वर होते हैं, लेकिन इसमें भिन्नताएं हो सकती हैं। कोशिका का आकार वर्गाकार होता है, और सेल के कोनों के बीच कोई अंतराल नहीं होता है।
थिन-फिल्म पैनल:- ये सोलर पैनल उद्योग में पतली फिल्म सौर पैनल एक अत्यंत नया विकास है। पतले फिल्म पैनल की सबसे विशिष्ट विशेषता यह है कि वे हमेशा सिलिकॉन से नहीं बने होते हैं।
उन्हें कैडमियम टेलुराइड (CdTe), अनाकार सिलिकॉन (a-Si), और कॉपर इंडियम गैलियम सेलेनाइड (CIGS) सहित विभिन्न सामग्रियों से बनाया जा सकता है।
इन सौर कोशिकाओं को सुरक्षा के लिए शीर्ष पर कांच की एक परत के साथ प्रवाहकीय सामग्री की पतली चादरों के बीच मुख्य सामग्री रखकर बनाया जाता है। a-Si पैनल सिलिकॉन का उपयोग करते हैं।
लेकिन वे गैर-क्रिस्टलीय सिलिकॉन का उपयोग करते हैं और इनके ऊपर कांच की एक परत होती हैं।
जैसा कि उनके नाम से पता चलता है, पतले-पतले पैनल को उनकी पतली उपस्थिति से पहचानना आसान होता है। ये पैनल सिलिकॉन वेफर्स का उपयोग करने वाले पैनल की तुलना में लगभग 350 गुना पतले हैं।
लेकिन पतली फिल्म के फ्रेम कभी-कभी बड़े हो सकते हैं, और यह पूरे सौर मंडल की उपस्थिति को एक मोनोक्रिस्टलाइन या पॉलीक्रिस्टलाइन सिस्टम के तुलनीय बना सकता है।
पतली-फिल्म कोशिकाएं काली या नीली हो सकती हैं, यह उस सामग्री पर निर्भर करता है जिससे वे बने हो।
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सोलर सेल कैसे काम करते है
Solar Panel कैसे work करता है ये जानने से पहले आपको ये जानना जरूरी है की Solar Cell जिनसे मिलकर Solar Panel का निर्माण होता है उनको कैसे बनाया जाता है।
अधिकतम solar cell सिलिकॉन धातु के बनाये जाते है जो एक अर्धचालक (Semiconductor) होता है, अर्धचालक उस पदार्थ को कहा जाता है जिसके अंतिम कक्ष में 4 इलेक्ट्रान होते है।
जब सिलिकॉन में कोई ऐसा पदार्थ मिलाया जाता है जिसके अंतिम कक्ष में 5 इलेक्ट्रान हो तो यह एक N-type (ऋणात्मक प्रकार) का अर्धचालक बन जाता है।
और जब सिलिकॉन में कोई ऐसा पदार्थ मिलाया जाता है जिसके अंतिम कक्ष में 3 इलेक्ट्रान हो तो यह एक P-type (धनात्मक प्रकार) का अर्धचालक बन जाता है।
Solar Cell बनाते समय हम इन दोनों अर्धचालको (N-type, P-type) को आपस में जोड़ देते है जिससे एक धनात्मक व एक ऋणात्मक परत हमे प्राप्त होती है, और इन दोनों परतो के बीच एक फोटो-वोल्टिक जंकशन बनाया जाता है।
इस तरह से सोलर सेल का निर्माण होता है।
सोलर पैनल कई छोटे फोटोवोल्टिक सेल (photovoltaic cells) से बने होते है। फोटोवोल्टिक जिसका अर्थ है कि वे सूर्य के प्रकाश को बिजली में परिवर्तित कर देते हैं।
ये सेल अर्धचालक पदार्थो से बने होते हैं सबसे अधिक सिलिकॉन एक ऐसा पदार्थ है जो विद्युत क्षेत्र बनाने के लिए आवश्यक विद्युत विभव (Electric voltage ) को बनाए रखते हुए बिजली का संचालन कर सकता है।
जब सूर्य का प्रकाश Solar Cell में अर्धचालक से टकराता है, तो प्रकाश से ऊर्जा, फोटॉन के रूप में, अवशोषित हो जाती है, इस अवशोषित ऊर्जा से उस अर्धचालक पदार्थ के कई सारे इलेक्ट्रॉन्स मुक्त (Free) हो जाते है, जो सेल में स्वतंत्र रूप से घुमते है।
What Is Silicones | सिलिकाॅन कैसे बनता है?
सिलिकॉन ब्रह्मांड में सातवां सबसे प्रचुर तत्व है और पृथ्वी की पपड़ी में दूसरा सबसे प्रचुर तत्व है। 2200°C के तापमान पर कार्बन के साथ रेत (SiO2) को गर्म करके सिलिकॉन को बनाया जाता है।
सोलर से बिजली कैसे बनती है?
सूरज की रोशनी में ऐसा कुछ नहीं होता है कि जिससे बिजली बन जाती है। दरअसल सूरज की रोशन में ऊर्जा होती है। ये ऊर्जा और इससे बनने वाली गर्मी ही बिजली बनने का रॉ मैटेरियल है।
जब सूरज की रोशनी किसी भी प्रदार्थ से टकराती है तो हीट में बदल जाती है। जैसे- जब आप धूप में बैठते हैं तो आपको गर्म लगने लगता है और आपके कपड़े भी गर्म हो जाते हैं। बस यही स्थिति सोलर पैनल के साथ होती है।
जो सोलर पैनल होता है उसमें सिलिकॉन सेल लगे होते है। ये सिलिकॉन विशेष प्रकार के होते हैं, जिसमें इलेक्ट्रॉन की मात्रा काफी ज्यादा होती है।
इसके बाद Solar Energy इस सिलिकॉन प्लेट पर पड़ती है तो इसमें पहले से इलेक्ट्रॉन होते हैं और गर्मी से ज्यादा इलेक्ट्रॉन बनने लगते हैं और उसमें हलचल शुरू होती है।
इसके बाद एक सिस्टम के जरिए इलेक्ट्रानो का प्रवाह होने लगता है और इलेक्ट्रॉन के इस प्रवाह को ही इलेक्ट्रिसिटी कहते है। ऐसे में इस इलेक्ट्रॉन से ही करंट बन जाता है और फिर इवर्टर आदि के माध्यम से इन्हें DC, AC में बदला जाता है।
सोलर सेल के फायदे
बिजली का बिल काम करना:- Solar Cell का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे बिजली की लागत कम होती है।
सूर्य के माध्यम से बिजली उत्पादन का अर्थ है की ग्रिड से बिजली की कम खपत और इस प्रकार व्यवसाय और घरों में बिजली के बिलों से काफी निजात मिलती है।
घर पर बिजली का उत्पादन करने के लिए पारंपरिक स्रोतों से उर्जा खरीदने पर अधिक पैसा खर्च करने की आवश्यकता होती है।
विद्युत उर्जा का अक्षय स्रोत:- क्योंकि यह ऊर्जा सूर्य के प्रकाश से प्राप्त होती है और सूर्य का प्रकाश प्राप्त करने में ना तो किसी प्रकार की लागत लगती है और ना ही इससे किसी प्रकार का नुकसान होता है।
क्योंकि सूर्य की रोशनी हमें सहज ही प्राप्त हो जाती है और यह ऊर्जा अक्षय ऊर्जा स्रोत के रूप में हमें प्राप्त है।
जिससे ना तो सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा कभी समाप्त होगी और न ही इसका उपयोग। इसी कारण से हमारी विद्युत की जरूरत हमेशा पूरी होती रहेगी।
पर्यावरण के अनुकूल:- Solar Panel द्वारा उत्पादित ऊर्जा एक स्वच्छ ऊर्जा है क्योंकि इसमे 0% कार्बन उत्सर्जन होता है इसी कारण से इसका वातावरण पर कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता है।
सौर ऊर्जा हानिकारक गैसों को भी नहीं छोड़ती और ना ही तेल और कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने की आवश्यकता पड़ती है।
मेंटेनेंस फ्री:- व्यापक उपयोग और तकनीकी प्रगति के कारण Solar Panel का रखरखाव बहुत ही आसान है।
इसका कोई मेंटेनेंस भी नहीं होता Solar Panel का मैन्युफैक्चरिंग करने वाली कंपनियां इसका मेंटेनेंस कास्ट कम करती जा रही हैं और प्रोडक्ट की लाइफ लंबी करती जा रही है और साथ में इसकी वारंटी भी काफी लंबे समय तक देती हैं।
Note:- सौर ऊर्जा से प्राप्त इलेक्ट्रिसिटी का खर्च बहुत ही कम होता है यह बहुत ही किफायती होता है और यह उच्च गुणवत्ता का होता है।
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सोलर सेल के नुकसान
लगवाने में अधिक लागत:- Solar Panel की स्थापना के लिए प्रारंभिक निवेश बहुत अधिक होता है बड़े स्थान की आवश्यकता होती है इसको लगाने के लिए।
क्योंकि Solar Panel का आकार काफी बड़ा होता है इसलिए उसे स्थापित करने के लिए एक बड़े जगह की आवश्यकता होती है।
धूप की आवश्यकता:- Solar Panel का सबसे बड़ा नुकसान यह होता है कि अगर सूरज की रोशनी उसको नहीं मिलेगी तो इलेक्ट्रिसिटी का उत्पादन नहीं कर पाएगा।
इसीलिए बारिश के मौसम में या ठंड के मौसम में जब धूप पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नहीं होती तो उस समय विद्युत का उत्पादन सुचारू रूप से नहीं हो पाता।
रात्रि के समय में जब सूरज की रोशनी नहीं मिलती तो उस वक्त भी Solar Panel विद्युत का उत्पादन नहीं करते।
सोलर ट्रैकिंग सिस्टम क्या है?
उस युक्ति को कहते हैं जो किसी वस्तु को घुमाकर उसे हमेशा सूर्य की तरफ बनाये रखता है। इस विधि को ‘सौर अनुसरण’ (सोलर ट्रैकिंग) कहते हैं।
सोलर पैनल लगवाने पर कितनी सब्सिडी मिलती है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से Solar Plant पर 15 हजार से 30 हजार रुपए तक सब्सिडी का प्रावधान किया गया है।
वहीं एक से तीन किलोवाट तक के Solar Panel पर 15 हजार की सब्सिडी मिलती है। वहीं तीन से लेकर 10 किलोवाट तक के Solar Panel पर 30 हजार रुपए तक की सब्सिडी मिलती है।
ऑन ग्रिड नेट मीटरिंग क्या है?
नेट मीटरिंग एक तरह का बिलिंग सिस्टम है, जो Solar Panel द्वारा पैदा होने वाली इलेक्ट्रिसिटी का मेजरमेंट करता है। साथ ही Solar Plant से ग्रिड को जाने वाली और घर में खपत होने वाली बिजली का भी हिसाब-किताब रखता है।
नेट मीटरिंग के लिए Solar System के साथ एक मीटर लगाना होता है, जो बिजली कंपनी उपलब्ध कराती है।
ऑन ग्रिड और ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम क्या है?
Ongrid सिस्टम ऐसे स्थानों के लिये best है जहां दिन का लोड बहुत ज्यादा और रात का लोड नहीं अथवा कम होता है।
लेकिन इस सिस्टम को उन्हीं जगहों पर प्रयोग करना बेहतर होता है जहां बिजली की आपूर्ति बहुत अच्छी है,और खासकर दिन के समय लगातार विद्युत आपूर्ति बनी रहती है।
इस सिस्टम की खास बात यह है कि यदि आपके Solar Plant से आपके उपयोग से अधिक बिजली बनती है तो आप इस Extra बिजली को अपने यहां के बिजली बोर्ड (Power House) को बेच सकते है।
इससे न केवल आपके घर का बिजली बिल खत्म होगा बल्कि आपको कुछ आमदनी भी होगी।
मान लीजिये आपका Solar System प्रतिदिन 20 यूनिट बिजली बनाता है, और आपका खर्चा प्रतिदिन 8 यूनिट का ही है तो बाकी की बिजली बिजली बोर्ड (Power House) को चली जायेगी, इस तरह आपके घर का बिजली का बिल कम होगा।
वहीं यदि कभी आपने बिजली बोर्ड से ज्यादा बिजली ली तो इसे उसमें एडजस्ट कर दिया जायेगा। हालांकि कई राज्यों में इसके लिये अलग-2 नियम है, इसलिये बेहतर होगा कि पहले आप अपने राज्य या अपने बिजली वितरण कंपनी की पाॅलिसी को जान लें।
ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम बैटरी आधारित सिस्टम है जिन्हे बिजली जनरेट के लिए सरकारी ग्रिड की आवश्यकता नहीं होती है। यह सोलर पैनल, सोलर बैटरी और सोलर इन्वर्टर के साथ कम्पलीट सोलर सेटअप है।
दूसरे सोलर सिस्टम की तरह ऑफ-ग्रिड सोलर सिस्टम सूर्य के प्रकाश को बिजली में कन्वर्ट के लिए सोलर पैनल का उपयोग करते है।
सोलर सिस्टम लगवाने वाले लोगो में ज्यादातर लगभग 90% लोग ऑफ ग्रिड सोलर सिस्टम लगवाना पसंद करते है।
यह सोलर सिस्टम मेन्स की बिजली जाने पर एक निश्चित समय के लिए इन्वर्टर और बैटरी की मदद से बिजली उपलब्ध करवाता है। आपका Off Grid solar system जितना बड़ा होगा उतना ही ज्यादा समय तक बैकअप भी देगा।
निष्कर्ष
सौर ऊर्जा बाकी सभी ऊर्जा स्त्रोतों का एक बेहतरीन एवं उम्दा विकल्प है, परंतु सरकार को इस दिशा में और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है ताकि सौर ऊर्जा का लाभ अधिक से अधिक लोगों तक आसानी से पहुंच सकें।
तो इस पोस्ट से आप सौर पैनल के 3 प्रकार क्या हैं? को अच्छे से समझ गए होंगे।
यह भी पढ़े।
1- इन्वर्टर में बैटरी का कनेक्शन
2- सोलर सिस्टम कितने प्रकार का होता है?
अब भी कोई सवाल आप के मन में हो तो आप इस पोस्ट के नीचे कमेंट करके पूछ सकते है या फिर इंस्टाग्राम पर “rudresh_srivastav” पर भी अपना सवाल पूछ सकते है।
अगर आपको इलेक्ट्रिकल की वीडियो देखना पसंद है तो आप हमारे चैनल “target electrician“ पर विजिट कर सकते है। धन्यवाद्
सौर पैनल के 3 प्रकार क्या हैं? से सम्बंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर (Mcq)-
1- सोलर पैनल क्या है हिंदी में?
सोलर पैनल फोटोवोल्टिक सेल से बना एक पैनल होता है जो घर की छतों पर लगाया जाता है यह सूरज की रोशनी में बिजली बनाता है।
2- एक सोलर पैनल से क्या क्या चल सकता है?
सोलर सिस्टम से माइक्रोवेव,मिक्सी, पानी की मोटर फ्रिज आदि विद्युत से चलने वाले उपकरणों को हम सोलर पैनल से चला सकते हैं।
3- सोलर पैनल कितने साल तक चलता है?
कंपनी के द्वारा सोलर पैनल की 25 साल की वारंटी मिलती है।
4- 10 साल में सोलर पैनल कितने कुशल होंगे?
सोलर पैनल की क्षमता प्रतिवर्ष 1% के हिसाब से कम होती है अतः 10 वर्षों में उसकी क्षमता 10% कम हो जाएगी।
5- सौर पैनल कितने प्रकार के होते हैं?
सामान्य रूप से सोलर पैनल तीन प्रकार के होते हैं जिसमें से मोनोक्रिस्टलाइन, पॉलीक्रिस्टलाइन और थिन-फिल्म पैनल होते हैं।